साहित्यिक वैचारिकी को आगे बढ़ाने का सगल, ‘हमरंग’ डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' September 23, 2016 टिप्पणियां, बहुरंग 206 हमरंग का एक वर्ष पूरा होने पर देश भर के कई लेखकों से ‘हमरंग’ का साहित्यिक, वैचारिक मूल्यांकन करती टिपण्णी (लेख) हमें प्राप्त हुए हैं जो बिना किसी काट-छांट के, हर चौथे या पांचवें दिन प्रकाशित होंगे | हमारे इस प्रयास को लेकर हो सकता है आपकी भी कोई दृष्टि बनी हो तो नि-संकोच आप लिख भेजिए हम उसे भी जस का तस हमरंग पर प्रकाशित करेंगे | इस क्रम में आज रायगढ़, महाराष्ट्र से ‘डॉ मोहसिन खान ‘तनहा’ ….| – संपादक साहित्यिक वैचारिकी को आगे बढ़ाने का सगल, ‘हमरंग’ डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’ स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं शोध निर्देशक जे. एस. एम. महाविद्यालय, 201, सिद्धान्त गृह निर्माण संस्था, विद्या नगर, अलीबाग – ज़िला रायगढ़ (महाराष्ट्र) पिन- 402 201 मोबाइल- 09860657970 Khanhind01@gmail.com हमरंग से मेरा परिचय सीधा नहीं हुआ बल्कि हुआ कुछ यूं कि अनवर सुहैल के कहानी संग्रह ‘गहरी जड़ें’ की समीक्षा बिना किसी के (लेखक और प्रकाशक) निवेदन किये अपनी मर्ज़ी से मैंने की। अनवर सुहैल से बात हुई कि आपके कहानी संग्रह की समीक्षा मैंने की है, तो उन्होंने कहा इसे हमरंग पर प्रकाशित कराएंगे। मेरा प्रथम परिचय हमरंग वेब पत्रिका से इसी माध्यम से हुआ। पश्चात में समीक्षा प्रकाशित हुई और हमरंग के संपादक हनीफ़ मदार जी से मेरी बात हुई। दूर मथुरा में बैठे एक ऐसे व्यक्ति से पहली बार बात हुई, जिसका बौद्धिक स्तर मुझे बात करने के बाद धीरे-धीरे पता चला। एक सौम्य आवाज़ और बहुत संतुलित होकर संवाद करने वाले व्यक्ति के रूप में हनीफ़ जी की छवि मेरे मस्तिष्क में बन गई और आज भी यही बनी हुई है। कई बार फिर मेरी रचनाओं के प्रकाशन के सन्दर्भ में हनीफ़ जी से बातें होती रहीं। कई मुद्दे खुलते रहे और अपनी अपनी राय हम आपस में ज़ाहिर करते रहे। एक बात ख़ास यह नज़र आने लगी कि वे भाववादी सिद्धांतों की अपेक्षा भौतिकवादी सिद्धांतो को महत्त्व देते हैं। फिर क्या था , एक अच्छा बौद्धिक स्तर का चिंतन हमारे मध्य समय-समय पर होता रहा और हम एक – दूसरे को बेहतर रूप में समझने लगे। हनीफ़ जी से मेरा मिलना कभी हो न पाया था, लेकिन जीवन में अवसर आएगा , ये मैंने सोचा था और एक वर्ष के भीतर उनसे भेंट का अवसर तब प्राप्त हुआ जब अलीगढ़ विश्वविद्यालय से मुझे असोसिएट प्रोफ़ेसर के साक्षात्कार की सूचना आई। मैंने तुरंत निःसंकोच हनीफ़ जी को फोन किया कि मैं अलीगढ़ आ रहा हूँ, मेरा साक्षात्कार है। हनीफ़ जी ने मेरे लिए ज़हमत उठाना चाही कि आप मेरे पास ही आकर रुकें, लेकिन ऐसा मेरे लिए संभव न था | मैंने वादा किया कि साक्षात्कार के पश्चात अवश्य आपसे मिलने आऊंगा। साक्षात्कार के पश्चात हनीफ़ जी के पास यमुना पार मिलने गया। उन्होंने अपनी कार मेरे लिए भेजी। कार से मैं उनके द्वारा संचालित स्कूल में पहुंचा और फिर बातों के लंबे दौर की शुरुआत हुई। कई विषयों पर बातें हुईं | अपने हमरंग परिवार से मुलाक़ात हुई, जिसमें अनीता चौधरी, एम ग़नी और सनीफ़ मदार हैं। अनीता चौधरी के व्यक्तित्त्व के दर्शन हुए, तो एक आधुनिक विचारधारा की महिला से परिचय हुआ। अपनी बेबाकी से राय वे भी संवाद के दौरान देती रहीं और महिला स्वतंत्रता की पक्षधरता पर गहनता से अपने विचारों से अवगत कराती रहीं। एम ग़नी एक बेहतरीन फ़िल्म मेकर की छवि और चिंतक के रूप में नज़र आए और वहीं सनीफ़ मदार एक अच्छे कलाकार और रंगकर्मी के रूप में अपनी पहिचान लिए युवाओं के बीच दिखाई दिए । साक्षात्कार के दौरान मुझे ताप था, ये ताप निरंतर बना हुआ था | थकान भी बहुत लग रही थी, लेकिन हनीफ़ साहब से बातों का जो सिलसिला चला तो फिर ताप होते हुए भी नहीं रुक सका। निरंतर बहुत से मुद्दों पर वैचारिक विमर्श होते रहे। सुरुचिपूर्ण असली घी की पूरियाँ और सब्ज़ी , दाल इत्यादि का भोजन उन्होंने कराया। शाम को कुछ विद्यार्थी एकत्रित हो गए जो एक नाटक की तैयारी कर रहे थे। पूरा वातावरण संगीतमय हो उठा और ख़ूब आनंद के साथ प्रेमचंद जयंती की तैयारियां देखता रहा। मुझे आश्चर्य होता है, एक छोटी सी जगह में लोगों में इतनी चेतना, वह भी साहिय को लेकर, यह तारीफ़ की बात से अधिक जीवटता की और साहित्य पर आस्था की बात नज़र आती है। साहित्य का जीवन में इस तरह का प्रवेश और उसी को आधार बनाकर जीवन को गति देना सचमुच यह बात मेरे लिए बड़ी महत्त्व की है। महत्त्व की इसलिए कि साहित्य आज भी जीवन की प्राथमिकता में सम्मिलित है और लोग साहित्य की संवेदना से जुड़े हुए हैं | जीवन के पर्याय के रूप में हिंदी के साहित्य को देख रहे हैं। हमरंग वेब पत्रिका का कलेवर पहले भी बेहतरीन था और अब नए परिवतन से हमरंग और भी शानदार होकर हमारे सम्मुख है। हमरंग से देश के अच्छे लेखक निरंतर जुड़ते जा रहे हैं। यह हनीफ़ जी की एकतरफ़ा मेहनत का सुपरिणाम है कि अच्छे लेखकों की रचनाओं को हमरंग पर गंभीरता के साथ ला रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिचय करा रहे हैं। हमरंग के संपादकीय के विषय में भी कुछ कहना चाहूँगा कि हमरंग का संपादकीय अपने आसपास के माहौल और जीवन को केंद्र में रखकर ही होते रहे हैं। मैंने जब भी संपादकीय पढ़ा नए चिंतन का साक्षात्कार किया। हमरंग के संपादक ने अपनी विचारभूमि समाज की उन समस्याओं को दी है जिसमें बहुत सी उलटफेर की गहन आवश्यकता है ताकि नई उर्वर भूमि का निर्माण हो सके। कई बार संपादकीय का अलोक इतना निखार लिए होता है कि पढ़कर संतुष्टि का आभास होता है। और भी बहुत सी बात यहाँ स्पष्ट करूँ लेकिन अब अवकाश नज़र नहीं आ रहा है, कुछ यादें शेष रखते हुए मैं हमरंग को बहुत सी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ कि साहित्य की वैचारिकी को वे हरदम नए सूत्र में निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे और पाठकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाभ पहुँचाते रहेंगे। इस अवसर पर हमरंग के पूरे दल को मेरी और से असीम बधाई और बहुत सी साहित्यिक अभिव्यक्तियों को हमरंग से रूबरू होते देखता रहूँ, बहुत सी कामनाओं के साथ आपका पाठक और लेखक। Bio Social Latest Posts By: डॉ0 मोहसिन खान ‘तनहा’ जन्म दिनांक – 01/06/ 1975 प्रकाशित पुस्तकें – 1. पुस्तक – ‘प्रगतिवादी समीक्षक और डॉ. रामविलास शर्मा’ । प्रकाशन – लेखनी प्रकाशन, उत्तम नगर नई दिल्ली, ISBN – 978-93-81326-0912. पुस्तक – ‘दिनकर का कुरुक्षत्र और मानवतावाद’ । प्रकाशन – अमन प्रकाशन, रामबाग, कानपुर (उ.प्र.), ISBN – 978-93-80 417-55-43. पुस्तक (सह-सम्पादक) – ‘देवनागरी विमर्श’ । प्रकाशन – मालव नागरी लिपि अनुसंधान केंद्र, उज्जैन (म. प्र.) उपन्यास- ‘त्रितय’, ग़ज़ल संग्रह- ‘सैलाब’। देश की कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में कई कहानियाँ, कविताएँ और गज़लें प्रकाशित संप्रति – हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं शोध निर्देशक NCC अधिकारी जे.एस.एम. महाविद्यालय,अलीबाग, संपर्क पता – 201, सिद्धान्त गृह निर्माण संस्था, विद्या नगर, अलीबाग, जिला – रायगड़ ( महाराष्ट्र ) पिन कोड – 402 201 khanhind01@gmail.com मोबाईल :- +919860657970 / 8793816539 यादें हैं शेष, इंसान और इंसानियत को ऊँचाई देने वाले कवि की:आवाज़ों के घेरे : आलेख (डा0 मोहसिन खान ‘तनहा’)थम गया संगीत का एक और स्वर: “रवींद्र जैन” , डा0 मोहसिन खान ‘तनहा’शातिर आँखें: एवं अन्य कविताएँ (डॉ० मोहसिन खान ‘तनहा’)स्त्रियों की छद्म आज़ादी का सूरज फेसबुक की झिरियों से: समीक्षा (डॉ० मोहसिन खान)प्रेमचंद एक पुनर्पाठ, के संदर्भ में एक टिपण्णी: (डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा)नए-नए जुमले और मुहावरे: कविता (डॉ मोहसिन खान)डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’ की गज़लें: humrangसाहित्यिक वैचारिकी को आगे बढ़ाने का सगल, ‘हमरंग’: (डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’)जिस्म की गिरफ़्त : कवितायें (डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’) See all this author’s posts Share this:Click to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on Twitter (Opens in new window)Click to share on Google+ (Opens in new window)Click to share on WhatsApp (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to email this to a friend (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Like this:Like Loading... 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