अच्छा आदमी!!! एवं अन्य कविताएँ: (सुशील उपाध्याय) सुशील उपाध्याय December 25, 2016 कविता 168 वर्तमान समय में समाज से लुप्त होती मानवीय संवेदनाओं के पहलूओं को विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करती सुशील उपाध्याय की कविताएँ – सम्पादक अच्छा आदमी!!! सुशील उपाध्याय हर किसी की निगाह में ऊंचा होता है अच्छा आदमी! बौने लोगों के बीच पूरी लंबाई का वाला अच्छा आदमी! उसके कदमों की आहट पर झुक जाते सिर, हर कोई आग्रही- हमारे घर आइये किसी दिन। और चौड़ा हो जाता अच्छे आदमी का सीना! छोटे लगने लगते- पड़ोसी, साथी, सहकर्मी, परिजन, प्रियजन! अच्छा आदमी कभी-कभी बोलता, अक्सर चुप रहता, उसकी चुप्पी को भी सब सुनते चुपचाप! लोग मांगते सलाहें, लेते आशीर्वाद, पूछते रास्ता। चमकने लगती सिर के पीछे दिव्य-दीप्ति। सहम जाती धरती! शांत, स्थिर, गुणी-ज्ञानी, तटस्थ, समदर्शी, प्रज्ञापुरुष…. और भी न जाने कितने-कितने गुणों को धारण करता अच्छा आदमी। न दुष्ट को दुष्ट कहता, न गलत को गलत और न बुरे को बुरा कहता ‘अच्छा आदमी’। हमेशा रखता शीर्ष से सहमति, वक्त के साथ बदलता अपना दायरा, परिधि और आयाम। जीवन-मरण के प्रश्नों पर देता दार्शनिक जवाब! तब, लोग खुद से पूछते- हमेशा अच्छा ही होता है ‘अच्छा आदमी’ ? बच्चा और कुंवारी इच्छाएं बच्चा, भुनी मूंगफलियों को हाथ में दबाए, मिट्टी खोदता है। बीज बोता है, खुश होता है! एक दिन, जिंदगी उगेगी भुरभुरी मिट्टी से! पानी देता है, फिर, बीज उखाड़कर देखता है, बीज, जो भुनी मूंगफलियां हैं! निराश होता है बीजों के साथ खेलता है! कुंवारी इच्छाओं के लिए, भगवान को पुकारता है! सवाल पूछता है, सयाने और गुनी लोगों से- कैसे निकलेंगी धरती से कौंपले ? लोग मुस्कुराते हैं, आगे बढ़ जाते हैं, बच्चा, नई जगह पर मिट्टी खोदता है, उसे जिद है जिंदगी उगाने की! कल का इंतजार करो, शायद! कौंपले फूट जाएं!!! रोटियां नहीं, सपने बेलती है सड़क पर ठेला लगाकर रोटी बनाती, बेचती है वो लड़की! गोल रोटियां, धरती के आकार जैसी। अक्सर लगता है- रोटियां नहीं, सपने बेलती है। गर्म तवे पर आकार लेती रोटियां, फूलती, फुस्स हो जाती। ठीक वैसे ही, जैसे कि अच्छे दिनों की उम्मीदें। चूल्हे की आग तवे को नहीं, देह को गरम करती है। लपटे भले ही बाहर दिखती हों, पर, ये भीतर से उठती हैं! लड़की रोज सामना करती है पेट की भूख का देह की भूख का नर-शिकारियों का, जिनकी भूख है पेट से नीचे लटकती, लहलहाती! लड़की आंखें झुकाएं रोटियां बनाती है। परोसती है। दिनों को ठेलती है, सड़क पर ठेले के पीछे खड़ी होकर! Bio Social Latest Posts By: सुशील उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में हिन्दी एवं भाषा विज्ञान विभाग के प्रभारी अध्यक्ष हैं। विगत दो दशक से मीडिया और अकादमिक जगत में सक्रिय हैं। संपर्क: एच-176, मनोहरपुरम, कनखल, हरिद्वार मोबाइल: 09997998050 ईमेल: gurujisushil@gmail.com See all this author’s posts Share this:Click to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on Twitter (Opens in new window)Click to share on Google+ (Opens in new window)Click to share on WhatsApp (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to email this to a friend (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Like this:Like Loading... Related Leave a Reply Cancel Reply Your email address will not be published.CommentName Email Website Notify me of follow-up comments by email. Notify me of new posts by email.