आखिर युद्ध की परिणति…? आलेख (रामजी तिवारी) रामजी तिवारी April 25, 2017 विमर्श-और-आलेख 43 फ्रेंच राष्ट्रपति ‘ओलांद’ के इस वक्तव्य का क्या अर्थ है कि “अब हम दयारहित आक्रमण करेंगे |” क्या उस दयारहित आक्रमण का निशाना सिर्फ आइएसआइएस पर ही होगा, या कि उस इलाके की सामान्य जनता पर भी | या कि ‘कोलैट्रेल डैमेज’ के सिद्धांत के अनुसार इतना तो चलता ही है, मान लिया जायेगा | नहीं नहीं …. यह समय इस तरह के सवालों को पूछने का नहीं है | और न ही इस तरह के सवालों को पूछने का, कि आइएसआइएस को खड़ा करने में किसकी जिम्मेदारी है ..? कौन उसका जन्मदाता है, कौन डोनर और कौन समर्थक …? आखिर युद्ध की परिणति…? रामजी तिवारी 1990 का पहला ईराक युद्ध इस बात के लिए भी याद किया जाता है कि पहली बार उसे दुनिया ने टेलीविजन के परदे पर अपने ड्राइंग रूम में बैठकर सीधे देखा था | जब अमेरिकी विमान हवाई आक्रमण के लिए पडोसी देशों के ‘हवाई बेस’ से उड़ान भरते थे, और जब ईराक की स्कड मिसाईलें उन विमानों पर निशाना लगाती थीं | आगे चलकर उन विमानों द्वारा गिराए जाने वाले हथियार भी प्रदर्शित किये जाने लगे | और फिर बाद में उससे होने वाली तबाही भी | कहें तो अभी तक हम जिस मंजर को हालीवुडीय फिल्मों में देखते आये थे, अब वह वास्तविक दुनिया में घटित होता हुआ दिखाई देने लगा था | उस युद्ध में हथियार निर्माता कंपनियों ने दुनिया भर में अपने अग्नेयास्त्रों का भौतिक परीक्षण भी कराया और कहें तो भौतिक प्रदर्शन भी | और यह प्रदर्शन कुछ इस तरह से हुआ कि दुनिया के लोग दांतों तले उंगली दबा लेने पर मजबूर हो गये | बाद में इस सदी के आरम्भ में हुए अफगान युद्ध और द्वितीय ईराक युद्ध में तो जैसे लड़ाकू विमान और टेलीविजन कैमरे साथ-साथ ही रहने लगे | एक विमान मिसाइल दाग रहा था, तो दूसरा उसकी तस्वीर उतार रहा था | कारपेट बमिंग और ड्रोन हमले के दृश्यों से भी उसी समय दुनिया परिचित हुयी | इन तस्वीरों ने दुनिया को ऐसे युद्धों का एक बड़ा दर्शक प्रदान किया | और फिर गत वर्ष हमने वह दृश्य भी देखा, जब गाजा में इजराइल की मिसाईलें कहर बरपा रही थीं, तो इजराइल के हिस्से के लोग शाम को अपनी पहाड़ियों पर इकठ्ठा होकर उसका लुत्फ़ उठा रहे थे | एक पूरा हुजूम कई दिनों तक युद्ध के इन दृश्यों को देखने के लिए हर शाम उस पहाड़ी पर इकठ्ठा होता रहा | त्रासदी देखिये कि पापकार्न के साथ सिनेमा देखने की बात, पापकार्न के साथ युद्ध देखने तक पहुँच गयी | कुछ इस तरह कि इसी दुनिया के नागरिक इस बात से बिलकुल ही अनजान हो गये कि ये दागी गयीं मिसाइलें या लड़ाकू विमानों से गिराए गए बम किसी घर, गाँव, शहर, और सभ्यता को तबाह कर रहे हैं | उनके मन में अब यह सवाल भी उठना बंद हो गया कि इस कारपेट बमिंग में आतंकवादी मारे जा रहे हैं या कि आम नागरिक | वे बस उसे विस्फारित निगाहों देखते जा रहे थे | लेकिन युद्ध के बाद दुनिया के सामने जो भयानक सच सामने आया, वह इस बात की तस्दीक कर रहा था कि इन युद्धों ने आतंक का सफाया तो नहीं किया, हां उसे और विस्तारित जरुर कर दिया | एक पूरा समाज इन युद्धों से न सिर्फ घुटनों पर आ गया, वरन उसके अंदरूनी ताने-बाने भी छिन्न-भिन्न हो गए | लाखों निरपराध लोग इसकी बलिवेदी पर चढ़े और करोड़ों का जीवन अनिश्चित भविष्य के गर्भ में चला गया | हालाकि अभी तक इस बात का कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है कि इन युद्धों से तबाह हुए कितने लोग आगे चलकर आतंकवाद के साए में शामिल हो गए, लेकिन तय मानिए कि यह संख्या कोई छोटी संख्या नहीं रही होगी | दुर्भाग्य यह कि पेरिस हमले के बाद फ़्रांस ने भी आतंक को मिटाने का वही रास्ता चुना है | अब फ्रेंच लोग अपने टेलीविजन चैनलों के सामने बैठकर फ्रांसीसी विमानों को उड़ान भरते हुए और बम बरसाते हुए देख रहे हैं | आसमान से ली गयी तस्वीरें दर्शाती हैं कि कैसे उनके विमान जमीन पर ठीक-ठीक निशाना लगा रहे हैं | नीचे पट्टी के रूप में टेलीविजन चैनलों पर सरकार की बात तैरती रहती है कि आज आइएसआईएस के इतने अड्डे नष्ट हुए और इतने कमांडर मारे गए | और फ्रेंच ही क्यों …. दुनिया के लोग भी टेलीविजन चैनलों के सामने बैठकर इस मंजर का लुत्फ़ उठा रहे हैं | अब उनके मन में यह सवाल नहीं उठता कि फ्रेंच राष्ट्रपति ‘ओलांद’ के इस वक्तव्य का क्या अर्थ है कि “अब हम दयारहित आक्रमण करेंगे |” क्या उस दयारहित आक्रमण का निशाना सिर्फ आइएसआइएस पर ही होगा, या कि उस इलाके की सामान्य जनता पर भी | या कि ‘कोलैट्रेल डैमेज’ के सिद्धांत के अनुसार इतना तो चलता ही है, मान लिया जायेगा | नहीं नहीं …. यह समय इस तरह के सवालों को पूछने का नहीं है | और न ही इस तरह के सवालों को पूछने का, कि आइएसआइएस को खड़ा करने में किसकी जिम्मेदारी है ..? कौन उसका जन्मदाता है, कौन डोनर और कौन समर्थक …? सोचिये …… कि जो दुनिया पापकार्न खाते हुए युद्ध देखने की अभ्यस्त हो चुकी हो, उसका अपना भविष्य कितने दिनों तक सुरक्षित है | सोचिये …. क्योंकि बकौल उदय प्रकाश ….. आदमी / मरने के बाद / कुछ नहीं सोचता | आदमी / मरने के बाद / कुछ नहीं बोलता | कुछ नहीं सोचने / और कुछ नहीं बोलने पर / आदमी / मर जाता है | Bio Social Latest Posts By: रामजी तिवारी उपलब्ध नहीं See all this author’s posts Share this:Click to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on Twitter (Opens in new window)Click to share on Google+ (Opens in new window)Click to share on WhatsApp (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to email this to a friend (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Like this:Like Loading... 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