जब उम्मीदें मरती हैं: एवं अन्य कविताएँ (संध्या नवोदिता) संध्या नवोदिता September 15, 2017 कविता 17 धूसर एकांत में समय से टकराती मानवीय व्याकुलता से टूटते दर्प और निरीह वीरान में सहमी खड़ी इंसानियत के अवशेषों के साथ चलती जिन्दगी की कल्पना बेहद खतरनाक होती है | वक़्त के चहरे पर और गाढी होती धुंध भरी परत को चीर कर आंशिक ही सही तीक्षण रौशनी की और इशारा भर जीवन का आधार बनने लगता है, इसी दृष्टि और अपने अनूठे बितान के साथ उतरती हैं ‘संध्या नवोदिता‘ की कवितायें जो महज़ विद्रूपताओं का संजाल ही नहीं है बल्कि संध्या की अपनी पहचान भी है साथ में साहस और उर्जा के साथ बढ़ते रहने का |.. – संपादक जब उम्मीदें मरती हैं संध्या नवोदिता जब सब उम्मीदें मरती हैं, तब मरघट शोक उभरता है, दिल खाली बेदम फिरता है जब केवल आहें बचती हैं शामें अंधेर उगलती हैं हर तरफ कराहें और चीखें ऐसे दिन रातें कटती हैं है अभी तो कोई युद्ध नहीं यह शांत समय कहलाता है पर उफ़न रहा भीतर सब कुछ ज्यों युद्ध चला ही आता है जो कातर है जो है निरीह वह हर पल कुचला जाता है जो पूँजी का अधिनायक है वह सौ सौ नाच नचाता है सब कुछ फीका फीका सा है न प्रेम , मित्रता का कुछ हल अब इंसानो की वकत कहाँ किसको फुर्सत बैठे दो पल सब भाग रहे हैं इधर उधर बस चूहा दौड़ जीतने को यह उनकी भी मजबूरी है कि आकुल चूहा बनने को ऐसे में ढूँढना प्यार मधुर ऐसे में खोजना एक साथी यह जीवन एक समंदर है तो खोज हमारी एक मोती किस ओर जायेगी यह दुनिया इस मार काट से अगर बची पूँजी के प्रेत की बाधा से रह जाए अगर यह बिना नुची सब नदी, समन्दर, जंगल, जन सब पर इस प्रेत का साया है सब सम्मोहन सब कुटिल क्रूर हथियार यह लेकर आया है हम कितने बेबस, कितने अधीर छोटा सा जीवन लिए चले छोटी छोटी सी इच्छाएं बस फूलों जैसी आस पले हम गीत उदासी के गाएं जुगनू जैसे जलते बुझते मुट्ठी में खुशियाँ बन्द किये गम के अंगारों पर चलते कुछ दूर तुम्हारा साथ रहे कुछ देर तो यह एहसास रहे कुछ उम्मीदों की रौनक हो इस साथ में नरम हरारत हो हम खुशियाँ जीत भी सकते हैं बस साथ में जुड़ते जाएं तो बेशक यह लूट विनाशक है पर मिल के इसे हराएं तो साथ तो आना ही होगा जीवन का अगर यह अंत नहीं पतझड़ के वीराने से डर रुक सकता कभी वसंत नहीं एक दिन जब हम नही रहेंगे एक दिन जब हम नही रहेंगे किताबों की ये अलमारी खोलेगा कोई और किसी और के हाथ छुएंगे इस घर की दीवारों को कोई खोलेगा खिडकी और हमारा रोपा इन्द्रबेला मुस्कुराएगा. हो सकता है किसी और की उंगलियां नृत्य करें इस कंप्यूटर कीबोर्ड पर कोई और उठाये फोन का रिसीवर एक दिन जब नही रहेंगे हम कुछ भी नही बदला होगा वैसे ही निकलेगा सूरज ,होगी शाम छायेगे घने बादल बंधेगी बारिश की लंबी-लंबी डोरियाँ नाव तैरायेंगे बच्चे .. छई छप करते हुए.. हमारे जाने के बहुत बहुत बाद तक रहेगा हमारा घर हो चुका यह मकान यह अलमारी, बरसो बरती गयी यह मेज़, मेले से चुन कर लाया गया यह गुलदस्ता, बेहतरीन कारीगर के बनाए चमड़े के बने घोड़े, शिल्प-हाट से बहुत मन से लिए गए कांच के बगुले, टेराकोटा का घना पेड़, लिखने की इटैलियन मोल्डेड टेबल , पहनी हुई चप्पलें, टूथ ब्रश ,ढेर सारे नए कपडे भी ,जो कभी पहने नही गए, हारमोनियम, कांच की चूडी, यहाँ तक कि आइना भी और हाँ ,दूसरे मुल्क की सैर कराने वाला पासपोर्ट और वे सभी कागज़-पत्तर जो हमारे जीवित होने तक पहचान पत्र बने रहे सब कुछ बच रहेगा बहुत समय तक बिना हमारे किसी निशान के जिस पल ये सब कुछ होगा बस हमारी गंध नही होगी इन सब पर , हमारी मौजूदगी का कोई चिन्ह नही उस दिन भी सब कुछ चलेगा ऐसे ही कुछ आपाधापी, कुछ मौज मस्ती लौट-लौट के आती है इन सब के बीच होने की ख्वाहिश कहाँ से बरसती हैं ऐसी हसीन इच्छाएं एक दिन जब जायेंगे हम फिर कभी न लौटने के लिए नही ही तो लौट पायेंगे सचमुच . Bio Social Latest Posts By: संध्या नवोदिता जन्म : 12 सितंबर 1976 कवि ,अनुवादक ,व्यंग्य लेखक और पत्रकार , छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका ,छात्र- जीवन से सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर लेखन ,आकाशवाणी में बतौर एनाउंसर -कम्पीयर जिम्मेदारी निभाई. समाचार-पत्र,पत्रिकाओं ,ब्लॉग और वेब पत्रिकाओं में लेखन. कर्मचारी राजनीति में सक्रिय, कर्मचारी एसोसियेशन में दो बार अध्यक्ष .जन-आंदोलनों और जनोन्मुखी राजनीति में दिलचस्पी. फिलहाल इलाहाबाद प्रगतिशील लेखक संघ की सचिव| कट्टी बट्टी का फ्लॉप शो : फिल्म समीक्षा (संध्या नवोदिता)जिस्म ही नहीं हूँ मैं : कविता (संध्या नवोदिता)प्रो. लाल बहादुर वर्मा को प्रथम शारदा देवी शिक्षक सम्मान, संध्या नवोदिता‘डिअर जिन्दगी’ व-नाम लव यू ज़िन्दगी..: फिल्म समीक्षा (संध्या नवोदिता)झुण्ड में रहना होता है ज़रूरी…! ‘द जंगल बुक’ फिल्म समीक्षा (संध्या नवोदिता)यह बेशर्म हमला हमारी सांस्कृतिक विरासत पर हमला है:जयति जय जय , जयति भारत: कविता (संध्या नवोदिता)‘संध्या नवोदिता’ की ग़ज़लें…. See all this author’s posts Share this:Click to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on Twitter (Opens in new window)Click to share on Google+ (Opens in new window)Click to share on WhatsApp (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to email this to a friend (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Like this:Like Loading... Related Leave a Reply Cancel Reply Your email address will not be published.CommentName Email Website Notify me of follow-up comments by email. Notify me of new posts by email.