समाज की तृष्णा अनदेखी रह गई.. : फिल्म समीक्षा (सैयद एस तौहीद)

सिनेमा फिल्म-समीक्षा

एस. तौहीद शहबाज़ 376 11/18/2018 12:00:00 AM

समाज की तृष्णा अनदेखी रह गई.. : फिल्म समीक्षा (सैयद एस तौहीद)

समाज की तृष्णा अनदेखी रह गई.. 

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एस तौहीद शहबाज़

प्रेम रतन की परिभाषा एवम दायरा इतना अधिक सीमित नही होना चाहिए जितना कि हालिया रीलिज ‘प्रेम रतन धन पायो’ या उसके समान फिल्मों में पेश किया जाता है. प्रेम एहसान तथा इंसानियत के महान मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का यह प्रयास मुश्किल समय में हमारे समक्ष है. बड़जात्या की प्रेम रतन का समय इसके प्रयास को मामूली करार दे रहा. आज समूचा विश्व कट्टरता -बर्बरता घृणा एवं असहिष्णुता की ज़द में खुद को पा रहा. प्रेम दिलवाले ने केवल बिखरे हुए मात्र एक परिवार को प्रेम रतन धन का एहसास कराया, जबकि पूरे समाज की तृष्णा अनदेखी रह गई..हाशिए पर जाने दी गई. देश और दुनिया प्रेम रतन धन से अछूते रह गए. पटकथा में जगह मिलना तो बहुत दूर समाज एवम विश्व की ज़रूरत का सांकेतिक उल्लेख भी नही किया गया.

मेरा व्यक्तिगत विचार है कि राजश्री वालों ने एक सुनहरे अवसर को यूं ही गंवा दिया.प्रेम रतन रूपी खजाने का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सकता था. कथा को परिवार से आगे गांव एवं समाज तक ले जाने की सामयिक ज़रूरत थी.घटनाओ एवम परिस्थितियो को राजघराने से उठा कर प्रीतमपुर के आमजन के बीच नहीं ले जा सके बड़जात्या.. प्रेम रतन का विस्तार क्या नहीं किया जाना चाहिए था ?

प्रेम दिलवाले एवम कन्हैया के राजघराने के अहंकार तथा स्वार्थ की संकीर्ण दुनिया में वहां एक नए संसार की रचना होती है. साधारण ख़ास को प्रभावित कर उसमें नाटकीय परिवर्तन लाता है. बड़जात्या को ऐसा अनुकूल माहौल बनाने में सफलता मिली जिसमे अमीर- गरीब,खास -आम घुल मिल गए. प्रेम रतन से राजसी खानदान की जटिलताएं सुलझने की दिशा में आ गई.प्रेम की जादूगरी से अहंकार स्वार्थ तथा नफरतो की दीवार धाराशायी हो जाती है. प्रेम रतन नाम धन पारिवारिक कलह की समस्या को प्रेम एवम हुस्न ए सलूक के माध्यम से हल करने का विकल्प देता है.हर परिवार अपनी मुश्किलों का इसी तरह सामना किया करता है.

google से साभार

प्यार, मुहब्बत एवं एहसान की वकालत करने वाली इस फिल्म में प्रेम रूपी धन का लाभ बहुत लोगों को नहीं दिया जा सका. प्रेम को ‘ प्रेम रतन धन पायो ‘ में दिखाई गयी परिधि से आगे निकाला जा सकता तो शायद कमाल हो सकता था. बड़जात्या की फिल्म का समय वैश्विक अस्थिरता का समय है. अहंकार, गुटबंधन, अवसरवादिता, युध तथा आतंक की शक्तियां मानव जगत के लिए खतरा हैं. इन नाजुक हालात में प्रेम रतन रूपी धन निजी एवम पारिवारिक सीमाओं तक महदूद क्यों ? जबकि समाज, देश एवम दुनिया को भी आज प्रेम धन की सख्त ज़रूरत नज़र आती है. प्रेम को विस्तार चाहिए ..

एस. तौहीद शहबाज़ द्वारा लिखित

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सैयद एस. तौहीद जामिया मिल्लिया के मीडिया स्नातक हैं। सिनेमा केंद्रित पब्लिक फोरम  से लेखन की शुरुआत। सिनेमा व संस्कृति विशेषकर फिल्मों पर  लेखन।फ़िल्म समीक्षाओं में रुचि। सिनेमा पर दो ईबुक्स के लेखक। प्रतिश्रुति प्रकाशन द्वारा सिनेमा पर पुस्तक प्रकाशित passion4pearl@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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