प्रकाश से प्रेम करतीं थी क्या? और प्रकाश? मुझे ना आने देते तो भाभी इतनी रूखी न होतीं, मृत्यु भावनाओं और विचारों को गड्डमड्ड कर देती है । जया को लग रहा था वो किसी ऐसे नाटक का हिस्सा है जिसकी स्क्रिप्ट ही उसे नहीं दी गई।
आँचल की ओट से
तीन साल का अज्जू माँ की छाती से चिपका धीरे -धीरे
दूध पी रहा था । माँ की एक बाजू उसकी तकिया थी तो
दूसरी कमर पेटी । पैरों के बने घोंसले में लेटा
वो एक हाथ से माँ के लंबे बालों को उँगलियों में
लपेटता और दूसरे हाथ से छाती सहलाता। गुलाबी फूलदार साड़ी के तिरपाल के भीतर
स्कूल की पोशाक टाई, बेल्ट, जूता, मोजा
और बैज में सुसज्जित अज्जू अपनी निजी गुलाबी दुनिया में खोया था। गुलाबी साड़ी
की आभा उसके गोरे चेहरे को दमका रही थी । कभी साड़ी में बने फूलों को
ताकता, कभी माँ की देह की और दूध की मिली जुली
सुगंध को आत्मसात करता । आँखों की पुतलियों और पैरों में हल्की थिरकन थी जैसे कि
कोई तिलस्मी संगीत बज रहा हो।
अररेरे एरे ..... छि!छि!छि!छि!
ये क्या हो रहा है? इतना
बड़ा लड़का देखो तो शरम भी नहीं आ रही इसको!! तीव्र भय से अज्जू का सारा शरीर ऐंठ
गया । छुई-मुई के पत्ते की तरह बंद हो कर वो माँ से लिपट गया लेकिन इस प्रयास की
व्यर्थता भी वो जानता था । ताईजी ने झट से माँ की साड़ी उठा कर अज्जू को रंगे
हाथों पकड़ लिया था। - “तू फिर गंदी बात कर रहा है?” इतने
बड़े बच्चे माँ का दूध नहीं पीते। बड़े बच्चे गिलास में दूध पीते हैं”। ताई जी के
कठोर चेहरे में क्रोध का बादल छाने लगा । - “मैंने
कहा था न के अगर तुझे फिर माँ का दूध पीते देखूँगी तो बहुत मारूँगी, तू
सुनता नहीं है। चल उठ गंदा कहीं का ।“ और वह
अज्जू की बाजू पकड़ कर खींचने लगीं ।
अज्जू एक शांत बच्चा था उसे किसी ने भी ज़ोर की आवाज
करते रोते या चीखते नहीं देखा था। अपना विद्रोह वह आँखों में सागर भरके करता और
बहुत देर तक सुबकता रहता। ताईजी फिर बिफरीं - “आज तो मैं तेरे स्कूल जाकर तेरी
मैडम को और सारे स्कूल के बच्चों को बताऊँगी कि देखो ये कितना गंदा बच्चा है अब भी
माँ का दूध पीता है। जब सब हँसेंगे ना तुझपर तब पता
चलेगा”। तीन साल का बच्चा मान अपमान
से जुड़ी शब्दावली भले ना जाने लेकिन उस भाव को महसूस कर सकता है। माँ का दूध ना पी
पाने से अधिक अज्जू अपने कृत्य के लिए धिक्कारे जाने से दुखी था। ऐसे समय
में उसका दिल और कान के पास वाली छोटी सी नस ज़ोरों से धड़कती थी। माँ की
खिसियाई हँसी से ये साफ जान पड़ता था के इस संकट से बचा पाना उसके बूते से बाहर की
बात है ताई जी ने अज्जू को खींचकर जबरन खड़ा कर दिया और दोनों बाजू पकड़कर झिंझोड़ने
लगीं - “बोल मानेगा कहना कि नहीं।“ दूध से
गीले अज्जू के होंठ थरथरा रहे थे । अब ताईजी मुखातिब हुईं अपने कपड़ों को व्यवस्थित
करती और अपराधियों-सी हँसी हँसती जया की तरफ- “जया तू कैसे इसको मनमानी करने देती
है? छुड़ा अपना दूध, अब तक
तो ठीक था पर अब वो स्कूल जाने लगा है तू बिगाड़ रही है इसे। परसों भी कहा था मैंने, फिर भी
सुधार नहीं रही”।
ताईजी अज्जू की सगी ताई नहीं थीं पड़ोस के नाते अज्जू
के माता-पिता यानी जया और प्रकाश भाभी कहते थे तो हो गईं अज्जू की ताईजी । लेकिन
अधिकार के मामले में कहीं कम ना थीं। घर में पैर रखते ही अंदर बाहर का जायजा लेतीं
और हो जातीं शुरू। अज्जू की सरल माँ को
उनका विरोध करने का साहस ना था और पिता तो किशोरावस्था से ही भाभी के रोब में थे।
ताईजी किशोरी विधवा थीं। 17 वर्ष की उम्र में जब
विवाह हुआ तो दसवीं तक पढ़ चुकीं थीं। दो साल बाद यानी 19वें वर्ष में जब पति का
देहांत हुआ तब तक कोई संतान ना हो पाने के कारण उनपर बांझ होने का आरोप लग चुका था
। जीवन नितांत खाली हो गया । बाल बच्चे होते तो एक दिशा रहती इस वक़्त ससुर का
स्कूल मास्टर होना ताईजी को फल गया । जब गोविंद मास्टर ने देखा कि बहू किताबें उलट
पलट कर देखती है तो उसे घर पर ही पढ़ाना शुरू किया। ग्यारहवीं और फिर बारहवीं
परीक्षा पास हो गईं तो पढ़ाई रोक दी गई । उच्च शिक्षा और नौकरी इत्यादि के लिए अभी
ना तो समाज तैयार था न ही मास्टर जी । सो ताईजी घर गृहस्थी, सिलाई-कढ़ाई
और कुछ पढ़ने लिखने में समय बितातीं । आस पड़ोस के बैंक का काम, फॉर्म
भरने आदि लिखा पढ़ी में भी मदद कर देतीं। धीरे-धीरे उन्होंने
मोहल्ले में अपनी एक जगह बना ली। अज्जू के पिता
यानी प्रकाश से ताईजी का विशेष प्रेम था । प्रकाश ताईजी से मात्र तीन वर्ष
छोटे थे। दोनों के घर एक दूसरे से सटे थे और सुख-दुख का आदान प्रदान था । सम आयु
पढ़ी लिखी भाभी पढ़ाई में भी मदद कर देतीं और साथ ही कुछ खिला पिला भी देतीं।
मुहल्ले के बाकी लड़के भाभी के इतने करीब कभी ना आ पाए। यह सहूलियत विशेष रूप से
प्रकाश के लिए थी। अपनी तमाम विडंबनाओं को झेलते बालिका ताई को प्रकाश में एक
सखा-सखी सब मिल गया था । घनिष्ठता अधिकार को साथ ही लाती है। ताईजी उम्मीद
रखतीं कि प्रकाश अपनी तमाम दिनचर्या का लेखा जोखा उसको बताए और
अगर प्रकाश से संबन्धित कोई बात उसे दूसरों से पता
चलती तो वे खिन्न हो जातीं, जिसे
वे जाहिर भी कर देतीं और प्रकाश सफाई ही देता रह जाता। समय बीता
और प्रकाश विवाह योग्य हो गया जिसमें भाभी का खासा
दखल रहा। आए दिन भाभी रिश्तों को ‘बेशऊर’, ‘तेज़’ या ऐसे
ही कोई कारण बता कर फेर देतीं थीं । जया के लिए भी अगर प्रकाश की माँ ज़ोर ना देतीं
तो ताईजी टालने वाली थीं खैर एक बात से ताईजी खुश थीं के जया गाय थी, जिसे
बचपन से भगवान, शैतान, इंसान, सांड, कुत्ता, बिल्ली, फूल, पत्ती, नदी, चाँद, सूरज
और तारे इन सबसे डराकर पाला गया था । रात को फूल पत्ती नहीं तोड़ने से लेकर बिल्ली
का काला होना, भगवान का प्रकोप और शैतान की नज़र, चाँद
की पूजा, सूरज को पानी, तारों
की चाल, जया सबसे डरती थी । कहने का मतलब है कि
एक आदर्श बहू के सारे गुण थे। पालतू गाय को अंदर बाहर
बांधना आसान होता है । पोते का मुँह देखकर प्रकाश के माता पिता परलोक सिधार गए। इधर मास्टर जी भी अपने जीवन
चक्र से मुक्त हो गए। सास तो पहले ही नहीं थीं सो दोनों घरों की एकमात्र बुजुर्ग
बनी ताईजी। जया ताईजी के प्रभुत्व से दबी रहती तमाम काम करने के बावजूद ये संशय
रहता कि जाने वो क्या कहेंगी। पति का झुकाव और लगाव भाँप जाने का गुण हर महिला में
नैसर्गिक होता है। अतः भीरु जया भी ताईजी का कद अपने घर
में खूब पहचानती थी। अज्जू के आने के बाद ताईजी का दखल और बढ़ने लगा। खुद माँ न बन
पाने का दुख जब तब उन्हें उग्र कर जाता। जच्चा की देखभाल से ज्यादा उसपर नियम थोप
दिये गए । ये छूना है या नहीं छूना, पूजा-पाठ
दान-दक्षिणा,पति से अलग रहना, बच्चे
को दूध पिलाने से लेकर जब जी चाहे बच्चे को अपने साथ ले जाना ताईजी के अधिकार
क्षेत्र में था । ताईजी का मानना था कि बच्चा होने के बाद माँ का सम्पूर्ण ध्यान
बच्चे और गृहस्थी के अन्य कामों में ही
होना चाहिए और प्रकाश को तो वो देख ही
लेगी प्रकाश को खाना खिलाने आदि की ज़िम्मेदारी ताईजी ने अपने ऊपर ले ली थी । जब भी
प्रकाश अज्जू को गोद में लिए दिखता ताईजी तमाम सही गलत, ठंडा
गरम, शुभ अशुभ, सीख
निर्देश दे दिलाकर बच्चे को जया के पास पहुंचा देतीं । असुरक्षा, भय और
ईर्ष्या ग्रस्त ताईजी एक नन्हे बालक से प्रतिस्पर्धा में थीं। तीन साल तक अज्जू को
माँ का दूध पीने के निर्देश देने वाली भी वे खुद ही थीं। अब एकाएक स्कूल
जाता बच्चा माँ का दूध पीता है कहकर लताड़ क्यूँ रहीं थीं -जया पूछना चाहती तो थीं
लेकिन जया ने उनसे कब कुछ कहा था जो आज कहती ।
अज्जू को धकिया कर पिता के सुपुर्द करती ताईजी गरज
रहीं थीं - “जाओ स्कूल बिल्कुल रोना नहीं।“ और
ऊँ-ऊँ करता अज्जू पिता का हाथ पकड़कर स्कूल की तरफ रवाना हो गया। उसके जाते ही
ताईजी ने जया को समझाना शुरू किया – “बहुत
हुआ जया, छुड़ा अपना दूध। नीम का पत्ता लगा
पीस के या कुनैन की गोली । एक बार मुंह खराब होगा तो खुद छोड़ देगा। ला मैं
बना देती हूँ लेप और वो नीम के पत्ते तोड़ने निकल पड़ीं ।
देर दोपहर अज्जू स्कूल से लौटकर देखता है कि माँ
अकेली बैठी है ताईजी का अता-पता नहीं था। आश्वस्त होकर वह माँ से लिपट गया।
जया भी मनुहार करती बोली- “आज
स्कूल में क्या पढ़ा मेरे अजुआ ने?” लेकिन
अज्जू तो ताईजी की अनुपस्थिति का पूरा फायदा उठाना चाहता था। वो ठुनकने लगा- “माँ दूध पीऊँगा।“ जब माँ
ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो वो खुद ही आँचल हटाकर छाती से चिपक गया लेकिन जैसे
ही मुँह लगाया सारा मुँह कड़वा हो गया। अज्जू के कड़वाहट से विकृत हुए चेहरे को
देखकर जया हँसने लगी लेकिन तुरंत ही उदास भी हो गई। अज्जू रो रहा था। जया फौरन
भीतर जाकर सारा लेप धो पोंछ आई और अज्जू को दूध पिलाने लगी। मिशन फेल हो चुका था
और अज्जू भी समझ चुका था के ये जो भी था पानी से साफ किया जा सकता है। अब जब भी
ताई जी जया की छाती में काला पीला कड़वा लेप चुपड़ती अज्जू बड़े मनोयोग से एक कटोरा
पानी और रुमाल लेकर धैर्य से उसे पोंछ डालता और स्वर्गानन्द में विचरण करता। जया
इन बाल लीलाओं को देख हँस -हँसकर दोहरी हो जाती। इस
दौरान ताईजी के आने का खतरा बराबर लगा
रहता तो आंचल की ओट में डरी हुई, चौकन्नी
चिड़िया की तरह अज्जू की एक नज़र हमेशा दरवाजे पर रहती ।
अज्जू रो रहा था । ताईजी ने उसे फिर से दूध पीते हुए
पकड़ लिया था । कुर्सी पर बैठी ताई ने अज्जू के हाथ और पैर को कसकर जकड़ा हुआ था।
ताई के घुटनों में फंसे अज्जू के दोनों हाथों के लिए ताई की एक हथेली ही काफी थी ।
इतनी पास से ताई का चेहरा और भयावह लग रहा था। क्रोध से फैलती बड़ी बड़ी आँखों के बीचोंबीच पुतलियाँ और टेढ़ी भवें। अज्जू
पीछे होने का भरसक प्रयास कर रहा था। तीखी आवाज से नन्हा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा
लेकिन वो भयावह चेहरा पास और पास आता जा रहा था। किसी तरह एक हाथ छुड़ा कर अज्जू ने
माँ की तरफ हाथ बढ़ाया और कातर दृष्टि से मदद की गुहार लगाई। माँ -माँ की पुकार ने
ताई को और क्रुद्ध कर दिया। ये तो उनकी अवहेलना थी। उनके सामने जया की क्या बिसात
और वह क्या माँ! क्या माँ! कहती एक हाथ से अज्जू को चपत दर चपत लगाती रहीं ।
जया से देखा न जा रहा था और वो आँचल से मुँह ढँककर खुद को संभालने लगीं ।
“आज तो
मैं तुझे सबक सिखाकर ही रहूँगी।“ ताई
दहाड़ीं – “जया
थोड़े चावल ले के आ।” जया ने
पति की तरफ देखा तो उन्होंने कहा- “जाओ, मेरा
मुँह क्या देखती हो।“ जया
भीतर से एक कटोरे में चावल ले आई । कमर से रुमाल निकालकर ताई ने उसमें थोड़े
चावल डाले और बोलीं- “इसमें एक फूल रख। जया मंदिर से
फूल उठा लाई जिसे ताई ने चावल के ऊपर रखा और फिर
प्रकाश की तरफ पलट कर बोलीं- “एक
सिक्का दो।’ प्रकाश ने आज्ञाकारी बालक की तरह फौरन
जेब से टटोलकर एक चमचमाता हुआ सिक्का ताईजी की हथेली में रख दिया । “भाभी में समझाती हूँ अज्जू को”- जया
मिमियाई। भाभी के रुख और टोटके के आयोजन से वो भी भयग्रस्त हो गई थी- “हाँ! हाँ! तूने समझा दिया और ये समझ
गया अब देख मैं क्या करती हूँ।“ और वो
आँख बंद करके रुमाल में रखे चावल फूल और सिक्के के ऊपर अपने हाथ घुमाते हुए कुछ
बुदबुदाने लगीं । अज्जू, जया और
प्रकाश चुपचाप ये नज़ारा देख रहे थे। आँखें खोलकर ताइजी अज्जू की तरफ मुड़ीं – “ये देख ले ध्यान से। ये सब मैं अपने
पास रख रही हूँ अगर तूने मेरे पीछे माँ का दूध पिया तो मुझे पता चल जायेगा, ये
चावल लाल रंग के हो जाएंगे तेरी जीभ के भी दो टुकड़े हो जाएंगे और तेरी माँ बीमार
हो जाएगी। समझ ले अज्जू, अगर अब
भी नहीं माना तो भगवान बहुत नाराज़ हो
जाएंगे।“ अज्जू
के चेहर पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं ।
उस रात अज्जू ने दूध पीने की ज़िद नहीं की और अगले दिन
सुबह भी बिना ज़िद किए स्कूल चला गया। भारी मनसे जया, अज्जू
का संयम देख रही थी। ‘देखा, भाभी
का नुस्खा कारगर रहा’। प्रकाश भाभी का लोहा मान गए ‘जो काम
कोई नहीं कर सकता उसे भाभी आसानी से निबटा देतीं हैं’ । भाभी
मुग्ध पति से जया कभी करीब न हो पाई थी। वो अदृश्य रूप से दोनों
के बीच रहती थीं ।
दोपहर को स्कूल से लौटा अनमना अज्जू माँ के आँचल में
छिपकर रोने लगा। माता और संतान के सम्बन्धों पर सही गलत की सीख तो सब दे सकते हैं
किन्तु उस गणित, मनोविज्ञान और रसायन शास्त्र के मिले
जुले शास्त्र का अनुभव नितांत निजी होता है। जया आँखों में आँसू भरकर रोते हुए
अज्जू को अपनी छाती से लगा कर दूध पिलाने लगी । तृप्त अज्जू ने सबसे पहले अपनी जीभ
की जांच की जो बिलकुल सही सलामत थी और जिसे कायदे से ताइजी के मुताबिक दो टुकड़ों
में विभाजित हो जाना चाहिए था और माँ भी बीमार नहीं दिख
रही थी । संतुष्ट अज्जू चहकता हुआ घर भर में इधर उधर
खेलने लगा ।शाम को जब ताई जी ने घर में प्रवेश किया तो जया के चोरों जैसे हाव-भाव
और मगन अज्जू को देखकर स्थिति ताड़ गईं ।
ताईजी की आवाज़ में जासूसों का सा सधा हुआ सुर था। और
साथ ही विरोध में उठते सुरों को कुचलने का जज्बा भी ।
-“तूने
दूध पिया न?”
‘मैंने कहा था न कि मुझे पता चल जायेगा”
“मेरे रुमाल में रखे हुए चावल लाल हो गए
हैं और उनकी पैनी नज़र अज्जू के मुखमंडल पर जम गईं। तीन साल की जान डर के मारे माँ
के पीछे छिप गई। जया को देखते ही ताईजी को सब साफ हो गया अंदाजा गलत नहीं था ।
दोनों गुनहगारों के चेहरे पारदर्शी हो चले थे ।
अब तो ताईजी का पारा सातवें आसमान पर था।
जया के पीछे से अज्जू को खींचकर दो तीन लप्पड़ एकसाथ
जड़ दिये। अज्जू का रोना और भाभी का चीखना
सुनकर प्रकाश भी कमरे में आ गए थे । ताई जी चिल्ला रहीं थीं –“आज कोई नहीं बोलेगा मैं इसे ठीक करके
रहूँगी।“ ताईजी की बात तो वैसे भी कोई नहीं
काटता था फिर प्रकाश की मौजूदगी तो उन्हें संबल ही देती थी वो और उग्र हो जाती थीं
जैसे जया को चुनौती दे रहीं हों कि देख ले खुद कौन है मालकिन?
अज्जू को ठोंकने पीटने के बाद ताईजी को कुछ और सूझा
जया के बाजू और पेट में पिछली रात को मच्छरों के काटे के निशान अज्जू को दिखाते
हुए बोलीं- “ये देख
ये सब तेरे कारण हुआ है।“
लाल -लाल छोटे-छोटे दाने देख कर अज्जू डर गया। - “तूने बात नहीं मानी ना अब ये और बड़े
होंगे और फिर भी तूने बात नहीं मानी तो तेरी माँ मर जाएगी।“ अज्जू सन्न रह गया। अपनी जीभ की उसे
कोई परवाह नहीं थी लेकिन माँ मर जाएगी ये तो
उसने सोचा ही नहीं था। वह जार -जार रोने लगा – “मैं
दूध नहीं पीऊँगा, माँ। मैं आज से बिल्कुल दूध नहीं
पीऊँगा।“ माँ-माँ
करता अज्जू सुबकते सुबकते सो गया। ताईजी विजयी भाव
से मुस्करा रहीं थीं। प्रकाश सारे दृश्य से द्रवित तो थे फिर भाभी ने ही समझाया था; अनुशासन
और सख्ती अच्छी परवरिश का हिस्सा हैं और जया से इन दोनों की उम्मीद वो ना ही रखे , वो तो
बच्चे को बिगाड़के रहेगी । भाभी की निपुणता के कायल प्रकाश अपनी गाय पर खीज
उठे।
”आज से
अज्जू मेरे साथ सोएगा। प्रकाश इसे खाना खिलाकर मेरे पास छोड़ जाना।“ ताईजी
अब कोई चांस नहीं लेना चाहती थीं। “भाभी
कहो तो मैं भी वहीं’ ........। प्रकाश
अचानक रंगीले देवर बन उठे । ‘चलो
हटो’!! कहती भाभी
नकली गुस्सा दिखने लगीं । अब
दोनों अपनी फूहड़ मज़ाक़ों पर हंस रहे थे । रात को अज्जू को खाना खिलाते वक़्त जया
कहना चाहती थी कि अब अज्जू नहीं पीएगा दूध, उसे
यहीं रहने दो लेकिन उससे पूछ ही कौन रहा था । आश्चर्यजनक रूप से अज्जू ने भी
कोई प्रतिरोध नहीं किया। लग रहा था जैसे कुछ एक ही पल में चार पाँच साल बड़ा
हो गया हो। चुपचाप पिता का हाथ पकड़ कर ताईजी के घर की तरफ चल पड़ा। रातभर जया पुत्र
के संताप को महसूस करती रही और रोती रही । समय और
परिस्थिति की सीख ही सच्ची सीख होती है । बचपन से हर जीवित और निर्जीव वस्तु से
भयग्रस्त जया उसका खोखलापन समझने लगी थी। वो अज्जू
को समझाना चाहती थी कि ‘देख ये
चक्तते मच्छर के काटने के दाग हैं तूने कुछ नहीं किया’।
दिमाग में चाहे कितना ही बवंडर मचे लेकिन सदियों की बेड़ियों को तोड़ना आसान नहीं
होता। आज पूरे दस दिन होने को आए अज्जू को माँ का दूध पिये। चार पाँच दिन अपने पास
सुला कर ताई जी भी ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहती थीं सो चेतावनी के साथ अज्जू
अपने पुराने स्थान पर वापस आ चुका था। अपनी सफलता से गौरवान्वित ताईजी ना देख सकीं
किन्तु जया अज्जू के स्वभाव में परिवर्तन महसूस कर रही थीं।
‘आज पूरे दस दिन हो गए’ ताई जी
ने गर्व से प्रकाश की तरफ देखा जो बदले में भाभी को प्रशंसा की दृष्टि से देख रहा
था । ताईजी ने अपने पल्लू में बंधा रुमाल निकाला जिसमें चावल फूल और एक
चमचमाते हुए सिक्के के अलावा थोड़ा सिंदूर
भी मिला हुआ था। देख कर जया को गुस्सा आने लगा । बच्चे को डराने के लिए कितनी
तैयारी करेंगी ये भाभी । तभी वो अज्जू से बोलीं - ‘इधर आ’ और
रुमाल सारे सामान सहित उसकी हथेलियों में टिका के बोलीं - ‘ये ले
के जा आराम से और बाहर वहाँ उस कोने में तुलसी के चौरे
में डाल के आ’।
अज्जू धीरे-धीरे सब सामान तुलसी के पौधे के पास मिट्टी में उड़ेल आया। अज्जू
के वापस आने पर ताई जी प्रकाश से बोलीं- “प्रकाश
आज लड्डू ले के आना, मैंने मनौती मांगी थी काम पूरा होने पर
देवता को भोग लगेगा नहीं तो वे नाराज़
हो जाएंगे और काम उल्टापड सकता
है।“ उन्होंने कनखियों से अज्जू को देखा।
ताई जी को अब खेल में मज़ा आने लगा था ।
-“बोल
भगवान जी मुझे माफ कर दो”
“आज से मैं गंदी बात नहीं करूंगा”
“आज से मैं गंदी बात नहीं करूंगा”
“ताई जी का कहना मानूँगा”
“ताई जी का कहना मानूँगा”
ताईजी की हास्य और व्यंग्य मिश्रित आवाज़ और अज्जू का
क्षीण और भययुक्त दुहराना जया को द्रवित कर रहा था। वह चीख कर कहना चाहती
थी-
“बस बहुत हुआ’ लेकिन
बेड़ियों के घावों को सहला कर रह गई। “
प्रकाश भी भाभी के तमाशे में शामिल हो कर दृश्य का
आनंद ले रहे थे और हँस रहे थे । तत्पश्चात् प्रकाश आज्ञाकारी बालक की तरह ताईजी के
निर्देशानुसार लड्डू लेने उठ खड़े हुए।
दोपहर होने को आई आज सुबह एक बार भी
ताईजी का आगमन नहीं हुआ था। यह अजीब अवश्य था किन्तु
जया को भला मालूम दे रहा था । कभी-कभी अपने हिस्से की सांस पूरी की पूरी फेफड़ों
में जाए तो शिकायत क्यूँ होगी भला। अचानक द्वार खुला और प्रकाश ने प्रवेश किया।
पति को असमय आया देख जया को अचंभा हुआ ।
इतनी जल्दी आ गए ? अभी तो
अज्जू भी नहीं आया स्कूल से
आपकी तबीयत तो ठीक है न ?
प्रकाश झुँझला उठा अरे रे, जरा
ठहरो ,पहले पानी दो
जया दौड़कर पानी ले आई। काम पर जा रहा था रास्ते से ही
भाभी ने बुलावा भेजा। बुखार से तप रहीं हैं भाभी । गाँव में चिकनगुनिया भी हो रहा
ही आजकल।
जया “अररे”। बस यही कह पाई
इतने सालों में उससे याद नहीं पड़ता कि भाभी कभी ठीक
से बीमार भी पड़ीं हों । सर्दी, सर
दर्द और हरारत के अलावा उन्होंने सेहत के उतार चढ़ाव कम ही देखे थे।
“मैंने डाक्टर को बुला के दिखा दिया है तुम खाना
बनाके ले जाना। चाय पानी पूछ आओ अभी।“
जया एक जग में चाय बना कर भाभी के घर की तरफ चल पड़ी।
बीमारी इंसान को कितना निरीह बना देती है बड़ी मुश्किल से एक कटोरा चाय हलक से नीचे
उतरी उसको भी ना ना करती ताईजी निढाल होकर फिरसे बिस्तर में पसर गईं। “खाना
नहीं खाऊँगी कुछ ना लाना।” ताईजी बड़बड़ा रही थीं।
“तू जा, प्रकाश
को भेज दे” सुनते ही जया का मन फिर कड़ुआ हो गया।
उसे तो वैसे भी जाना ही था, अज्जू
के स्कूल से वापस आने का समय हो चला था।
घर पहुंची तो देखा प्रकाश तैयार बैठे थे बोले - “तुम
अज्जू को संभालो मैं भाभी के पास बैठता हूँ।” कहते ही वो बाहर की तरफ लपके
उन्हें कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
प्रकाश का ज्यादा समय ताईजी के साथ कटता, जया
खाने पीने का जिम्मा संभाले थी। डॉक्टर जो भी खाना या सेक आदि बताता जया दक्षता से
करती रहती। अज्जू सो चुका था.... “आज भाभी के पास मैं रुक जाऊँगी” पहली बार जया के
स्वर में निर्णय झलक रहा था प्रकाश ने ध्यान से जया को देखा और फिर अज्जू के पास आ
कर लेट गए.. “ठीक है मैं अज्जू के पास रुकता हूँ“।
चार दिन होने को आए ताईजी की सेहत में कोई सुधार न
था। तमाम टेस्ट चिकनगुनियाँ ही बता रहे थे । डाक्टर शहर ले जाने की बात कर रहे थे
।
“भाई भतीजे के आने में तो समय लग जायेगा कल मैं ही लिए
जाऊंगा शहर” -प्रकाश
ने जया से कहा ।
जया को भी यही सही लगा “ठीक है मैं आपका सामान रख
देती हूँ”
अगली सुबह जब शहर ले जाने के लिए ताईजी को उठाने का
प्रयास किया गया तो पाया कि वो तो अंतिम यात्रा पर निकल पड़ीं हैं। भाई बंधुओं को
पहले ही बीमारी की खबर दी जा चुकी थी सो अब उनके आने में समय न लगेगा।
ताईजी के झट्ट पट्ट प्रस्थान से प्रकाश और जया दोनों
ही हतप्रद थे। रसोई घर से चुपचाप जया भीतर कमरे में पलंग के कोने मैं बैठे प्रकाश
को देख रही थी प्रकाश का संताप देख उसका मन गीला हो गया...अगर वो और अज्जू न होते
तो क्या बुरा होता ....अच्छा ही होता, अज्जू
कहाँ है?...मुझे भाभी के जाने से दुख हो रहा है
क्या? ये कौन सी नस है जो दपदप कर रही है? कहीं
प्रकाश नाराज़ तो नहीं? नाराज़ क्यूं होंगे भला? अब कल
से हम क्या करेंगे? भाभी, प्रकाश
से प्रेम करतीं थी क्या? और
प्रकाश? मुझे ना आने देते तो भाभी इतनी रूखी न
होतीं, मृत्यु भावनाओं और विचारों को गड्डमड्ड
कर देती है । जया को लग रहा था वो किसी ऐसे नाटक का हिस्सा है जिसकी स्क्रिप्ट ही
उसे नहीं दी गई। अज्जू कभी माँ को तो
कभी पिता को देख रहा था। माँ ताईजी को क्या हुआ? वो
कहाँ हैं? कोमल मन को जीवन मृत्यु समझाना आसान भी
तो नहीं। जया धीरे धीरे अज्जू के बाल सहलाने लगी। बेटा ताईजी भगवान के पास चली
गईं। भगवान के पास? वो आए थे क्या उनको लेने?और
अज्जू बारी-बारी से माँ और पिता को देखने लगा। जब कोई जवाब न मिला तो उठकर भीतर
चला गया ।
जब वापस आया तो उसके हाथ में एक कागज की पोटली थी जया
और प्रकाश ने देखा पोटली में कुछ मिट्टी और सिंदूर मिले चावल एक सूखा फूल और एक
चमचमाता हुआ सिक्का था। अपनी छोटी-छोटी
हथेलियों में समस्त सामग्री संभाले अज्जू तुलसी के चौरे के पास गया और सब कुछ वहाँ उड़ेल के, हाथ
जोड़ के खड़ा हो गया। जया और प्रकाश अजीब मनोभावों से अज्जू के क्रियाकलापों को देख
रहे थे। अज्जू पलटा और बोला बाबा आज लड्डू ले आना मैंने भगवान
से बोला था कि काम होने पर लड्डू दूंगा नहीं तो वह
नाराज़ हो जाएंगे। जया अवाक थी प्रकाश अब गुस्से में था “तू लड्डू बांटेग, लड्डू बांटेगा तू कहते हुए वह अज्जू पर
झपटा”। फुर्ती से जया अज्जू के सामने आ गई दूसरी बार जया की आँखों में दृढ़ता थी।
जया, प्रकाश की आँखों में झाँकते हुए अज्जू
से कह रही थी- “तेरे लड्डू तो मैं घर में ही बना दूंगी ...पर आज नहीं, हाँ”
और अज्जू का हाथ पकड़ कर जया भीतर चली गई।
-पेंटिंग साभार google