स्मृतियाँ एवं अन्य कवितायें : रूपाली सिन्हा

कविता कविता

रुपाली सिन्हा 472 11/18/2018 12:00:00 AM

वर्तमान समय की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में कुछ सुनहले पल, यादों की पोटली लिए मन के किसी कोने को थामे रहते है जब भी थकती साँसों को थोड़ा आरम की जरुरत होती हैं, यही यादें उन्हें संबल के रूप में पुनर्जीवित कर देती है | ऐसी ही स्मृतियों से गुजरती हुई रूपाली सिन्हा की कवितायें …… सम्पादक

स्मृतियाँ

रुपाली सिंहा

1.

वक्त तो यात्री है
कब ठहरता है भला
पकड़ाकर स्मृतियों का झुनझुना
निकल जाता है चुप्पे से।

2.

बैठी हूँ पार्क के बेंच पर
जो साथी रहा है बरसों तक
सुना रहा है बीते वक़्त की कहानियाँ
मौन सुन रही हूँ
अपनी कहानी उसकी ज़ुबानी।

3.

खड़ी हूँ वहाँ
जहाँ कभी था प्रेम का सोता
कानो में घुलती है कल-कल
सामने दूर तक फैला है रेत का समंदर।

4.

न जाने कितनी बातें
जो कही-सुनी थीं
झाँक जाती हैं दरख्तों के परदों से
हँसी खेल रही है लुका-छिपी
होंठों पर।
5 .

हमारी ढलती उम्र को रोकेंगी
युवा स्मृतियाँ
अवसाद के क्षणों में उम्मीद की किरण
विदा के वक्त
द्वार तक आएँगी छोड़ने
सहारा देकर।

रुपाली सिन्हा द्वारा लिखित

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