निरुद्देश्य कुछ नहीं होता: विवेचन “HUMRANG”

निरुद्देश्य कुछ नहीं होता: विवेचन “HUMRANG”

पद्मनाभ गौतम 388 11/17/2018 12:00:00 AM

हमरंग का एक वर्ष पूरा होने पर देश भर के कई लेखकों से ‘हमरंग’ का साहित्यिक, वैचारिक मूल्यांकन करती टिपण्णी (लेख) हमें प्राप्त हुए हैं जो बिना किसी काट-छांट के, हर चौथे या पांचवें दिन प्रकाशित होंगे | हमारे इस प्रयास को लेकर हो सकता है आपकी भी कोई दृष्टि बनी हो तो नि-संकोच आप लिख भेजिए हम उसे भी जस का तस हमरंग पर प्रकाशित करेंगे | इस क्रम की शुरूआत में आज… वर्तमान सामाजिक, साहित्यिक जरूरतों, चुनौतियों एवं प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए, एक वर्ष पूरा होने पर ‘हमरंग’ की वैचारिक और सांस्कृतिक प्रतिवद्धता का समग्र विवेचन करता ‘पद्मनाभ गौतम’ का लेख …| – संपादक

हाल ही में प्रकाशित

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