बच्चों को कम न आंके : नाट्य रिपोर्ट (शिवम् राय)
बच्चों को कम न आंके

शिवम् राय
भारतेन्दु नाट्य अकादमी ‘रंगमण्डल’ लखनऊ के द्वारा हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी एक माह की ‘बाल रंगमंच कार्यशाला’ की गयी। जिसके अन्तर्गत पंजाबी नाटककार डा० सत्यानन्द सेवक के नाटक ‘कबीर’ (हिन्दी अनुवाद-अमृता सेवक) की प्रस्तुति दिनांक 30 जून 2017 को बी० एम० शाह प्रेक्षागृह, भा० ना० अ० लखनऊ में हैप्पी कलीज़पुरिया के निर्देशन में मंचित किया गया। इस कार्यशाला की प्रस्तुति में जिस प्रकार ‘कबीर’ को व नाटक के कथ्य को सफलतापूर्वक संप्रेषित बच्चों के माध्यम से किया गया वो अभूतपूर्व व हतप्रभ करने वाला था।
हम प्रायः बच्चों के लिए पंचतंत्र, जंगल, जादू, परियो की कहानियाँ, इत्यादि ही को उपयुक्त सामग्री के रूप में प्रयोग करना श्रेयस्कर समझते हैं। बच्चों की कार्यशाला में हैप्पी कलीजपुरिया के ‘कबीर’ करने का निर्णय जहाँ शुरूआती दिनों में कुछ अभिभावक व रंग शिक्षकों-चिन्तकों को चौकाने वाला व ग़लत लगा। वही अभिभावक व रंग चिन्तक नाटक के अन्त में सन्तुष्ट दिखें व प्रशंसा भी की….. कि …. बहुत अच्छी प्रस्तुति रही। कुछ अभिभावक आपस में बात करते नज़र आये कि ‘‘ कम से कम ‘कबीर’ तो समझे…. कुछ दोहे तो याद कर लिये…. वैसे पढ़ने के लिये उठाओ तो नही जागते…. जैसे कहो बी० एन० ए० जाना है, झट से तैयार हो जाते हैं। नाटक जहाँ डिजाइनिंग सेट, प्रकाश, वस्त्र के स्तर पर ख़ास कलेवर लिये हुए था। वहीं सजीव संगीत, मुख्य स्वर (प्रवीन्दर कुमार, हैप्पी कलीजपुरिया) व कोरस गायन हृदयस्पर्शी होने के साथ-साथ कथा-सूत्र के प्रवाह को बनाये रखता है व बच्चों के परफारमेन्स में योग देता प्रतीत होता है। बच्चों में कहीं भी संवाद भूलने की ग़लती या फ़म्बल इत्यादि नहीं की बल्कि मंच पर विशेष प्रभावों को बहुत सफाई से एक्जिक्यूट किया। अभिनय के स्तर पर ‘क्षणे रूष्टाः क्षणे तुष्टाः रूष्टे तुष्टे क्षणे क्षणे’ वाले बच्चों में ये प्रतिभा इन्बिल्ट होती है। उन्हें कल्पनाशीलता, अवलोकन, एकाग्रता व समझ के स्तर पर कम नहीं आंकना चाहिए। थियेटर एक्सरसाइजेस, गेम्स इत्यादि में जिस तेजी, प्रखरता की आवश्यकता होती है वो उनमें सहज स्वतः ही होती है। (उदाहरणार्थ इब्राहिम का किरदार करने वाले कुशाग्र ने आशु-सर्जना कर प्रस्तुति में योग दिया।)
बच्चों में मिलकर कार्य करने की भावना भी स्वतः ही होती है, थियेटर के द्वारा उनकी इस क्षमता में अभिवृद्धि होती है। (उदाहरणार्थ इस प्रस्तुति में कथक नृत्य का संयोजन 12 वर्ष की प्रतिभागी तिस्या गोला ने किया व साथ के प्रतिभगियों ने मिलकर इसे बेहद खूबसूरत तरीके से प्रस्तुत किया जिससे उनका आत्मविश्वास निश्चित तौर पर बढ़ा होगा।) बच्चों में नाटक की गम्भीरता की समझ नहीं होने की बात कई बार कही जाती रही है किन्तु नाटक के दौरान उनके प्रयास, उनकी प्रवृत्तियों व प्रतिभा को देखकर और अन्ततः प्रस्तुति को देखकर ये कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि ये प्रस्तुतियों परिपक्व प्रस्तुतियों के सदृश भी थी। मसलन बच्चों को भूमिका की तैयारी हेतु जो मार्ग, तरीके बताये गये उन पर पूरी तन्मयता के साथ घंटों अमल करके लगे रहते थे व अपनी भूमिका के साथ-साथ अन्य भूमिकाओं को भी याद कर लेना इस बात का सूचक है। (उदाहरणार्थ सुल्तान की भूमिका करने वाले प्रतिभागी शान्तनु ने ‘कबीर’ भी तैयार किया था, इसी प्रकार कई अन्य प्रतिभागियों ने भी किया था। बच्चें इस प्रशिक्षण में रंगमंच, संगीत, अभिनय, स्वर सम्भाषण, विभिन्न गतिविधियां व खेलों के जरिये, जहाँ इस विधा से परिचय प्राप्त करते हैं, वहीं इस प्रशिक्षण से बच्चें खुलते है, अभिव्यक्तिपरक बनते हैं। 
जो उनके पढ़ाई, कैरियर एवं सम्पूर्ण जीवन में मददगार सिद्ध होता है। बच्चों के साथ कार्य करते हुए कई बार ऐसा भी होता है कि हम भी बच्चों से सीखते हैं। 3 जरूरत इस बात की है कि हम अपने चश्में से बच्चों को न आंके, उन्हें खुली आखों से देखें उनमें सम्भावनाओं का अथाह भण्डार है। उन्हें खुले आसमान की तलाश है जिसमें वो अपने पंखों को परख सकें, अपने परवाज़ को खु़द देख सकें व आपको दिखा सकें। अतएव बच्चों पर विश्वास रखना चाहिए उन्हें ‘कम नहीं आंकना चाहिए।’