कामवाली की जाति: लघुकथा (सुशील कुमार भारद्वाज)

कथा-कहानी कहानी

सुशील कुमार भारद्वाज 413 11/18/2018 12:00:00 AM

कामवाली की जाति: लघुकथा (सुशील कुमार भारद्वाज)

कामवाली की जाति

In partnership with Canada's Women in Cities International, India's Jagori is working towards building safer cities for women. (CNW Group/International Development Research Centre)

गूगल से साभार

सारिका बहुत परेशान थीं |घर के सारे काम खुद ही करने पड़ते थे | अंत में उसने पडोसी के घर काम करने वाली रागिनी से मदद मांगने की सोचीं |और अगली शाम ज्योंही उनकी नज़र रागिनी पर पड़ी उन्होंने लपक कर खुद को उसके आगे करते हुए कहा – “अरे रागिनी ! क्या मुझे भी अपने जैसी काम करने वाली को बुला दोगी ? …. अब क्या बताऊँ ? खुद से सारा काम हो नहीं पाता है | सुबह से शाम तक में क्या क्या करती रहूँ ? ”
मुस्कुराते हुए रागिनी ने जबाब दिया -” आदमी की भी कोई कमी होती है ? बस अच्छे लोग मिलने चाहिए | मैडम के यहाँ काम से फुर्सत ही नहीं मिलती वर्ना मैं ही कर देती |”
आशा की किरण मिलते ही सारिका बोली – ” सच पूछो तो मेरी भी यही इच्छा थी, पर सीधे कैसे कहती ? खैर किसी वैसी को देखना जो घर के साफ़ सफाई के साथ साथ रसोई में भी कभी कभी मदद कर दे |”
“मैडम ये भी कोई कहने की बात है |”
“रागिनी तब तो लगता है की मेरा काम जल्दी ही हो जायेगा | पैसे की कोई बात नहीं है जो उचित होगा दूंगी | बस एक बात का ध्यान रखना की वो किस जाति धर्म की है…..? तुम सब कुछ समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रही हूँ ?”
गौर से रागिनी सारिका के चेहरे पर देख रही थी और बात खत्म होते ही बोली -” मैडम एक बात पुछूं ?”
“हाँ हाँ पूछो , क्या पूछना चाहती हो ? ” – सारिका हुलस कर बोली |
रागिनी सारिका के चेहरे पर नज़र गडाये हुए ही बोली – “मैडम सिर्फ काम करने वाली की जाति – धर्म पर ही ध्यान देना चाहिए ? या जिसके यहाँ काम करना है उसके जाति – धर्म का भी ध्यान रखना चाहिए ?”
सारिका इस सवाल के जबाब में सिर्फ रागिनी को फटी आँखों से देखती रह गयी |

सुशील कुमार भारद्वाज द्वारा लिखित

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