मोमबत्ती एवं अन्य कविताएँ (अनुपम त्रिपाठी)

कविता कविता

अनुपम त्रिपाठी 2521 11/23/2018 12:00:00 AM

युवा छात्र, संस्कृत कर्मियों की बनती यह सामाजिक दृष्टि अपने दौर की एक सुखद छाँव की अनिभूति से भर देती है, कुछ यही एहसास कराती हिन्दू कॉलेज में बी.ए.(आनर्स) सैकंड इयर के छात्र ‘अनुपम त्रिपाठी‘ की यह कविता …..| – संपादक

मोमबत्ती 

मोमबत्ती   

जबकि तुम्हारे पास अपना मोम

और जल जाने को बाध्य

जमे हुए मोम के बीच

सख्त-सी चपीं हुई एक डोर

मौजूद है।

और क्योंकि तुम्हारा जलना

किसी देवता की अराधना

या कि अँधेरे का विरोध

दोनों ही बता रहें हो महत्त्व

तुम्हारे अस्तित्व के बने रहने का

तब क्या तुम समझा सकोगी

माचिस और तुम्हारे बीच के

इस एक छुअन के रिश्ते को

जिससे जलने लगती है डोर

पिघल जाता है तुम्हारे देह का सख्त दिखता मोम

शहर में बिना हलचल

बिना शोर किए

धीरे धीरे

चुपचाप।

मोमबत्ती

जबकि तुम्हारे पास अपना मोम

और जल जाने को बाध्य

जमे हुए मोम के बीच

सख्त-सी चपीं हुई एक डोर

मौजूद है।

और क्योंकि तुम्हारा जलना

किसी देवता की अराधना

या कि अँधेरे का विरोध

दोनों ही बता रहें हो महत्त्व

तुम्हारे अस्तित्व के बने रहने का

तब क्या तुम समझा सकोगी

माचिस और तुम्हारे बीच के

इस एक छुअन के रिश्ते को

जिससे जलने लगती है डोर

पिघल जाता है तुम्हारे देह का सख्त दिखता मोम

शहर में बिना हलचल

बिना शोर किए

धीरे धीरे

चुपचाप।


२-     


तुम्हारे लिए

ना जाने कब से

सर्दी की कड़क भोर में

चूल्हा जलने से पहले

आस्था में दीप हो

प्रार्थना में धीमें- धीमें शब्द गुनगुनाती

बिता रही है जीवन

एक अधेड़ उम्र की स्त्री

      तुम्हारे लिए

      इस भयावह शहर के

       गहरे अंधियारे मुंह में

       प्रवेश कर जाती हैं

       दो बूढ़ी आँखें

       अपनी साइकिल पर ज़ोर देकर

        कांपते-हाँफते।

एक साधक

साधना में लीन हो

गा रहा है सुर

रच रहा है कविता

गढ़ रहा है बुत

तुम्हारे लिए

      इस घर में ईंट ही ईंट का सहारा है

      जड़ है तो यह वृक्ष

      तुम हो तो दुनिया

      वरना रज़ाई का खोल।

 ३- 


शांति दूत

•••••••••••••

शांति में 

तार पर बैठा शांति दूत कबूतर

मारा गया।

तार पर जो और थे पक्षी

वे उड़ गए

किन्तु यह न उड़ा

डटा रहा।

यह न था कोई योग

था अंतिम सत्य का प्रयोग।

उसने देखा:

बंदूक थामें हाथ को

अपने उपर लगे साध को

ट्रिगर पर दबती ऊँगली 

और धाँय से आती गोली।

उसने यह भी देखा

कि बंदूक एक

ट्रिगर एक 

बंदा एक, उंगलियां अनेक।

लेकिन वह डरा नहीं

तार से हिला नहीं

यह अंतिम प्रयोग हारा गया

सबने देखा, वह मारा गया।


कई दिनों तक

लाश सड़ती रही

गाड़ियाँ गुजरती रहीं।

जिसने इसे हत्या कहा

वह मारे गए

जिसने वध कहा

वह पूजे गए।

अनुपम त्रिपाठी द्वारा लिखित

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