'द माइग्रेंट' ( The Migrant ) : अभिषेक प्रकाश

सिनेमा सिनेमा लोक

अभिषेक प्रकाश 1190 7/9/2020 12:00:00 AM

यह फिल्क एक महानगरी जीवनशैली में पलने वाली लड़की और उसकी उन मजदूरों पर निर्भरता की कहानी कहती है

'द माइग्रेंट' ( The Migrant )

कईसे आई फेरु ई नगरीया हो,

डगरिया मसान हो गईल!

ऐसा ही कुछ इधर बीते महीनों में, महानगरों में रहकर अपना पेट पालने वाले मेहनतकश मजदूरों ने मन ही मन जरूर गाया होगा! हजारों हज़ार किलोमीटर से पैदल या गाड़ियों में जानवर की तरह ठूस कर आने वाले मजदूर कैसे प्रवासी हो गए इसकी कहानी या फिर इसका सामाजिक-आर्थिक या  मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एक विस्तृत बहस का हिस्सा जरूर हो सकता है, जिसके लिए अतिरिक्त श्रम की जरूरत पड़ सकती है।

लेकिन एक फ्लैट संस्कृति में रचने-बसने वाले जीव पर इसका एक साधारण लेकिन गहरा असर क्या हो सकता है, इस कहानी को ही कहती है निर्माता-निर्देशक-लेखक संजय मासूम की फ़िल्म "The Migrants".

एक साधारण कैमरे की मदद से एक फ्लैट में एक लड़की को लेकर इस फ़िल्म को बना लेना निर्देशक की रचनात्मकता की कहानी बयां करता है।

हर आदमी ने लॉक डाउन को अलग अलग नज़रिये से देखा। एक नौकरशाह या फिर एक सरकारी आदमी के लिए यह सेवा का ऐसा अवसर रहा जब उसने अपनी क्षमता से पार जाकर प्रदर्शन किया,साथ ही साथ उसमे तमाम कमियां भी रही,कुछ चूक भी हुए लेकिन अधिकतम अवसरों पर नीयत सन्देह से परे रहा।

लेकिन फ़िल्म में लेखक का नज़रिया उन तमाम घर लौटते मजदूरों की बेबसी को,उनके संघर्षों को बयां करने वाला है।सोशल मीडिया पर उपलब्ध फ़ुटेज से उनकी तमाम चुनौतियों को दस मिनट में पर्दे पर उतार देना बेहद काबिले तारीफ है।

खैर इस पूरी फिल्म को दो भागों में देखा समझा जा सकता है।पहले भाग में निर्माता -निर्देशक द्वारा रचित नज़रिया जो उस अकेले बन्द फ्लैट में रहने वाली महिला से सम्बंधित है और दूसरा है डॉ सागर द्वारा रचित गीत ' कईसे आई तोहरा ई नगरिया हो,डगरिया मसान हो गईल' के साथ चलने वाली फुटेज से!

फ़िल्म का पहला भाग एक महानगरी जीवनशैली में पलने वाली लड़की और उसकी उन मजदूरों पर निर्भरता की कहानी कहती है वही डॉ सागर द्वारा रचित गीत उन मजदूरों के मजबूरी,संघर्षों, और आत्मसम्मान के खातिर अपने गांव-घर-परिवार के खातिर हज़ारों किलोमीटर चलकर गांव तक पहुचने तक से लेकर पूंजीवादी व्यवस्था से उपजी जीवन विसंगतियों को कहती है।डॉ सागर के गीत और फ़िल्म दो अलग-अलग लेकिन एक ही संघर्ष को पिरो देने की कहानी है।

पुनः दस मिनट की इस फ़िल्म को केवल डॉ सागर और संजय मासूम के लिए ही नही बल्कि सच्चाई को नजदीक से परखने के लिए देखा जा सकता है!

अभिषेक प्रकाश द्वारा लिखित

अभिषेक प्रकाश बायोग्राफी !

नाम : अभिषेक प्रकाश
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

लेखक, फ़िल्म समीक्षक

पूर्व में आकाशवाणी वाराणसी में कार्यरत ।

वर्तमान में-  डिप्टी सुपरटैंडेंट ऑफ़ पुलिस , उत्तर प्रदेश 

संपर्क- prakashabhishek21@gmail.com

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

Lalita bhatt

09/Jul/2020
हमारे बिहार की दोमट मिट्टी की विशेष गन्ध लिए ....बहुत सुंदर आज की स्थिति का सही आकलन समेटे 🙏🙏

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.